जो भी ज्योतिष में विश्वास रखता है या इस विषय में थोड़ा भी ज्ञान रखता है तो वह ग्रह दशा के महत्व के विषय में ज़रूर अवगत होगा। मानव जीवन में ग्रह दशा के महत्व को नहीं बदला जा सकता। इन दशाओं के कारण बड़े बदलाव देखने को मिलते हैं। दशा को बदलना जीवन को कई बार पूर्ण रूप से बदल देने वाला भी साबित हो सकता है। प्रत्येक ग्रह/planets की महादशा का प्रभाव अलग-अलग रूप से पड़ता है। उक्त ग्रह व्यक्ति के लिए कितना शुभ या अशुभ है तथा ग्रह की कुंडली में स्थिति किस प्रकार की है यह बात जन्म कुंडली/Janam Kundali में ग्रह की स्थिति द्वारा निर्भर होती है।
राहु
की दशा का दशा प्रभाव
राहु
महादशा का समय किसी
भी व्यक्ति के जीवन में अनिश्चितता
से युक्त रहने वाला हो सकता है।
प्रत्येक ग्रह अपने गुणों को अपनी दशा
अवधि में अवश्य ही दर्शाता है
फिर चाहे वह ग्रह शुभ
हो या अशुभ कुछ
मूल तत्व जो उस ग्रह
की प्रकृति को दर्शाते हैं
वह हमें उस ग्रह की
दशा में भी अवश्य प्राप्त
होते ही हैं। यदि
बात की जाए राहु ग्रह/RahuPlanet की
तो ज्योतिष शास्त्र में इसे एक नैसर्गिक पाप
ग्रह के रूप में
स्थान प्राप्त है जिसे छाया
ग्रह भी कहते हैं
क्योंकि इसके अस्तित्व का स्वरूप बिंदु
के रूप में अंकित होता है। राहु की दशा का
समय विंशोत्तरी
महादशा/Vimshotrimahadasha में
अठारह वर्ष तक का माना
गया है। राहु की दशा का
प्रभाव का जातक को
अव्यवस्थित सा कर देने
वाला होता है। राहु कुंडली शुभ अशुभ जैसा भी हो लेकिन
मूल गुणों को तो अवश्य
ही देता है। राहु दशा में जातक को बेचैनी, अनिद्रा,
मानसिक चिंता, किसी प्रकार का भय, भ्रम
की स्थिति, दुविधाओं का दौर, विचारों
में उथल-पुथल, भावनात्मक एवं आत्मिक सुख की कमी जैसी
बातें राहु की दशा में
देखने को मिल सकती
हैं।
राहु
दशा का समय व्यक्ति
के भीतर नई सोच और
नई ऊर्जा के विकास का
समय होता है। कल्पनाओं की उड़ान भी
इसी दशा में सबसे अधिक ऊपर उठती है। उत्साह और जोश भी
इस समय पर मिलता है।
यह समय बाहरी संपर्क कराने वाला होता है तथा आंतरिक
चेतना को जानने की
जिज्ञासा का भी होता
है। राहु
दशा/RahuMahadasha व्यक्ति
को दुस्साहसिक करने की ओर भी
अग्रसर कर सकती है।
यह समय गलत एवं सही परिवेश के मध्य अंतर
की एक महीन रेखा
का होता है, जहां अच्छे और बुरे के
मध्य को समझना काफी
मुश्किल भी हो जाता
है।
बृहस्पति
दशा प्रभाव
राहु
का अंत और बृहस्पति दशा/Jupiter
dasha का आरंभ किसी भी व्यक्ति के
जीवन में एक अत्यंत ही
महत्वपूर्ण समय होता है, क्योंकि भ्रम या मायाजाल का
आवरण अब हटने की
स्थिति में होता है। बृहस्पति अब उन बातों
का बोध कराता है, जिनके विषय में भटकाव की स्थिति बनी
हुई थी। बृहस्पति ग्रह/Jupiterplanet को
नैसर्गिक शुभ ग्रह का स्थान प्राप्त
होता है, इस कारण बृहस्पति
में मौजूद जो नैसर्गिक गुण
होते हैं, उनसे जातक अवश्य प्रभावित भी होता है।
जब पाप ग्रह की समाप्ति होती
है तथा शुभ ग्रह का आगमन होता
है तो उक्त स्थिति
में जातक का जीवन भी
निश्चित तौर पर प्रभावित होता
है।
राहु दशा की जो बेचैनी थी वह अब कुछ थमने लगती है। मानसिक चेतना जो अभी तक कई रूपों में विभाजित थी अब कुछ केन्द्रित होने लगती है। अनिश्चितता को शांत होने का अवसर मिलता है। जीवन में उथल-पुथल की स्थिति भी धीरे-धीरे अपनी स्थिरता की ओर अग्रसर होने लगती है। बृहस्पति जो ज्ञान तथा मौलिकता को समझने की बुद्धि देता है। जीवन में अचानक होने वाली घटनाओं का दौर भी कुछ शांति की स्थिति को पाने वाला हो सकता है। बृहस्पति का आगमन काफी हद तक राहु के प्रभाव को को नियंत्रित करने में सहायक बनता है। बृहस्पति दशा का आरंभिक समय व्यक्ति के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि अभी राहु की समाप्ति के साथ होने वाले बदलाव अब बृहस्पति द्वारा पूर्ण होने होते हैं, तो ऐसे में व्यक्ति इस बदलाव को किसी न किसी रूप से अपने आस-पास अथवा अपने भीतर मौजूद पाता है।
0 comments:
Post a Comment